वन्दे भारत के पत्थरबाज!
चौथी बार भी पत्थरबाजी का शिकार बनने के बाद
अपने जख्मों को सहलाते हुए ‘वन्दे भारत एक्सप्रेस’ अपनी गति की तरंग-लय में कुछ
सोचती-विचारती गतिमान है कि जब मेरे पहियों के ट्रैक पर चहलकदमी यानी ट्रायल
प्रारंभ हुआ और अब जब यात्रियों को लेकर तेज रफ्तार पकड़ रही हूँ, मुझपर यह तीसरी बार पत्थरबाजी हुई है। मूर्ख शैतान पत्थरबाजों को मेरी
चमक-दमक के साथ तेज चौकड़ी भरना रास नहीं आ रहा। इन्हें पता होना चाहिए कि मेरी
गुणों और गति में आधुनिक भारत के अधिकांश लोगों के सपनों की धड़कन बसी है। लोग आज
समय के साथ चलना चाहते हैं, जब पूरी दुनिया नवगति, नवलय से आगे बढ़ रही है तो भारत के लोग कबतक लस्टम-पस्टम करते हुए घंटों के
सफर को दिनों में पूरा करते हुए पीछे घिसटते रहें। हाँ, यह
सही है कि हर देश और समाज में ऐसे लोग होते ही हैं, जो
तर्क-विज्ञान और आधुनिकता को धता बताते हुए अतीत और कठमुल्लेपन के शिकार होते हैं
क्योंकि विवेक और आधुनिकता को समर्थन देने से उनका धंधा-पानी बंद होने का डर होता
है। जरा सोचिए, जब पहली बार हाईस्पीड रेल की बात हुई थी तो
अच्छे-खासे गुणीजनों ने कैसा उपहास उड़ाया था।
यह सिर्फ मेरे साथ ही थोड़ा ही हुआ है, यहाँ की बेटियों के साथ भी यही
सब होता रहा, जब उसने नए जमाने के अनुरूप पुरुषों के संग
कदम-ताल मिलाकर चलना प्रारंभ किया। उसे रोकने के लिए क्या-क्या नहीं होता रहा है।
पहले तो उसके जन्म से पहले भ्रूण में ही मार देने की कोशिश, किसी
तरह अगर जन्म हो गया तो पालन-पोषण और समान शिक्षा में हजार तरह के शारीरिक,
मानसिक रोड़े, उससे किसी तरह आगे बढ़ी तो कैरियर,
शादी, घर-गृहस्थी में हर जगह कहीं दहेज,
कहीं तेजाब, तो कहीं तलाक, तलाक और तलाक के नाम पर वज्रपात! देश और दुनिया में न जाने कितनी बेटियों
को अपने मूलभूत अधिकार पाने और स्वतंत्र होकर सर उठाकर जीने की चाहत में संगसार कर
दिया गया। परंतु फिर भी बेटियाँ हारने वाली नहीं हैं, वे आगे
बढ़ रहीं हैं, सरपट भाग रही हैं, हर
मोर्चे पर झंडे गाड़ रही हैं।
भारत के मस्तक कश्मीर में तो आए दिन पत्थरबाजी
होती है। ये पत्थरबाज उन जवानों पर पत्थरबाजी करते हैं, जो इनकी सुरक्षा और देश की
रक्षा के लिए अपना घर-बार छोड़कर इनकी सेवा में अपनी जान को जोखिम में डालकर
दिन-रात डटे हुए हैं। ये भाड़े के पत्थरबाज नहीं जानते हैं कि वे जिनके इशारे पर
पत्थरबाजी कर रहे हैं, वे उनकी आजादी, जीने
का अधिकार, उनके सपने, आशाओं, आकांक्षाओं और उनके कश्मीर, जिसे वे जन्नत कहते हैं,
सबको मिटाकर सांप्रदायिक कट्टरता की अंधी सुरंग में ले जा रहे हैं।
ये युवा भारत में लोकतंत्र की हवा में श्वास लेते हुए पले-बढ़े हैं, इन्हें यह नहीं पता कि उन्हें कट्टरपंथी आजादी के नाम पर जो सुनहरे सपने
दिखा रहे हैं, वह इनको कितना घोर रक्तरंजित मध्यकालीन अंधकार
में डूबी असभ्य दुनिया में ले जाने वाला है।
एक दिन मेरे साथ सफर करते हुए दो यात्री मुझ पर
हुई पत्थरबाजी पर बहस करते हुए कह रहे थे कि अनेक बार, खासकर बिहार, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि से गुजरनेवाली रेल में लाइन
के बगल में खेलते-खड़े बच्चे बिना किसी कारण के ही पत्थरबाजी कर देते हैं, इससे लोगों की जान-माल और सरकारी संपत्ति का भारी नुकसान होता है, परंतु जब आप देश के दूसरे क्षेत्रों, खासकर दक्षिण
भारत से गुजरने वाली रेल के सफर में अकसर देखने को मिलता है कि बच्चे बाय-बाय करते
और शुभकामनाएँ देते हुए मिलेंगे। दूसरे ने उनसे काफी हद तक सहमति जताते हुए जोड़ा
कि ऐसा नहीं है, यहाँ भी अनेक बार स्वागत करते मिल जाएंगे।
कोई भी बच्चा माँ के पेट से तो ढेला फेंकना सीखकर आता नहीं, इसके
लिए उसका परिवार तथा माता-पिता द्वारा दिए जा रहे संस्कार, समाज
जिसमें वह पल रहा है, उसके नैतिक मूल्य तथा उसकी शिक्षा
जिम्मेदार है।
आगे बढ़ती वन्दे भारत सोचती है, कुछ साल पहले ही तो भारतीय रेल
का क्या बुरा हाल था, हर तरफ रेल से लेकर हर स्टेशन पर कैसी
गंदगी का अंबार था, लेट-लतीफी से यात्रियों का हाल बुरा था।
दुर्घटनाओं और लूट-खसोट की कोई सुनवाई नहीं, किसी की
जिम्मेदारी तय नहीं। रेल मंत्रालय को एक दुधारू गाय समझकर इस मंत्रालय पर हर नेता
की नजर रहती, रेलमंत्री इसके बजट में सिर्फ नई रेल की घोषणा
करते, अपने चहेतों को ठेके और नौकरी बाँटते, जिसमें जमकर भ्रष्टाचार होता। परिणाम यह हुआ कि रेल दौड़ना तो दूर, रेंगती हुई विलंब से गंतव्य तक पहुंचती। ऐसे माहौल में बुलेट रेल, और हाईस्पीड रेल की बात ही क्या, सेमी हाईस्पीड रेल
भी उनके लिए सपना ही था। केन्द्र सरकार की संकल्प शक्ति, कार्यक्षमता
के कारण अपने ही देश में ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनी मैं सेमी हाईस्पीड वंदे भारत रेलवे ट्रैक पर फर्राटे भर रही
हूँ, कुछ महीनों में मेरी अनेक सखियाँ भी देश के कोने-कोने
में द्रुत लय-ताल मिलएँगी और मुझे पूरा विश्वास है कि 2022
तक बुलेट रेल हवा से बातें करने लगेगी।
शरमाती-इठलाती आगे सरपट भागती वह सपनों में खो
जाती है, मैं तो
‘वन्दे भारत रेल’ पूरे भारत को ‘वन्दे भारत’ करने के सपने को साकार करने का एक छोटा
सा साधन मात्र हूँ, मेरे जैसे हजारों साधन, चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा,
कृषि, उद्योग, पर्यावरण
जैसे अनेक संसाधनों की कड़ियाँ जब जुगलबंदी करते हुए तीव्र गति से अपनी सेवा देंगी।
भारत का हर बच्चा स्कूल जाएगा। किसान और मजदूरों को मेहनत की पूरी कीमत मिलेगी।
बेटियाँ बिंदास होकर अपने सपने को साकार करेंगी। हर युवा को उसकी योग्यता और
क्षमता के अनुरूप रोजगार मिलेगा। कोई बुजुर्ग, विधवा या बेवा
किसी की मोहताज नहीं होंगी। हर वर्ग निर्भय होकर सम्मान से जीएगा और समय पर सबको
इंसाफ मिलेगा। पहाड़ हरे-भरे होंगे, नदियाँ स्वच्छ और स्वतः
प्रवहमान होंगी, हर आँगन व हर डाल पर चिड़िया गुंजायमान होंगी
और अनगिनत फूल खिलखिलाएँगे। नासमझ पत्थरबाजों को समझाने का प्रयास हो, नकारात्मक प्रगति के रोड़ेबाजों को समय से समुचित सजा मिले। तभी होगा असली
वंदे भारत!